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अलमस्त दिगम्बर मूर्ति ! तर्ज- (अगर है ग्यान को पाना )
हमारे संत अवलिया ,
वली शेगांव में रहते ।
गजानन ! नाम है उनका ,
सभी दुनिया यही कहते || टेक ||
हमेशा मस्तिमें रहना ,
किसीका लोभ ना करना ।
दिगंबर देह का बाना ,
प्रभू ! की याद में बहते ॥ १ ॥
मिली झूठी कही पत्तल ,
उठाये शीत चावल के ।
पिये जल बैल - धावोंमें ,
हमेशा सूख दुःख सहते ॥ २ ॥
कहीं गादी कहीं तकिया ,
कहीं पडते है भूमीपर ।
कहीं फूलों के हारों में ,
महालों में पड़े रहते ॥३ ॥
हजारों लोग की गर्दी ,
चली रहती है दर्शन को ।
लहर जिनपे लगी उनकी ,
दलिंदर पार है करते ॥ ४ ॥
थे दुनिया में तभी वैसे ,
समाधी में तभी वैसे ।
जिन्होंको हो गया अनुभव ,
वो प्यारेही हमें कहते ॥५ ॥
वह तुकड्यादास कहता है ,
गजानन ! की दया होवे ।
तो बेडापार हो जावे ,
यही आशा सदा करते ॥६ ॥
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